
वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) सर्वे के दौरान हिन्दू पक्ष की तरफ से सोमवार 16 मई को परिसर में स्थित कुएं में, करीब 12 फीट 8 इंच लंबा शिवलिंग (Shivling) मिलने का दावा किया गया है. आपको बता दें, कि सर्वे का काम अब पूरा हो गया और कल यानी 17 मई को कोर्ट के सामने टीम की तरफ से पूरी रिपोर्ट रखी जाएगी. इसके साथ ही, आज जो शिवलिंग मिला है, उसे संरक्षित कराने के लिए वकीलों की टीम कोर्ट पहुंची थी.
ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में शिवलिंग मिलने के दावे के बाद, वाराणसी कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, कि 16 मई 2022 को मस्जिद परिसर के अंदर शिवलिंग मिलने का दावा किया गया है, जो कि इस मामले में बहुत ही महत्वपूर्ण सबूत साबित हो सकता है. इसलिए कोर्ट ने वाराणसी के जिलाधिकारी को इस जगह को सील करने का आदेश दिया है और साथ ही इस खास जगह पर, मुसलमानों का प्रवेश भी वर्जित कर दिया गया है. आपकी जानकारी के लिए बता दें, कि अब मस्जिद में मात्र 20 मुसलमानों को नमाज़ अदा करने की इजाजत दी गई है और उन्हें वजू करने से तत्काल रोक दिया गया है.
गौरतलब है, कि वाराणसी के जिलाधिकारी, पुलिस कमिश्नर, पुलिस कमिश्नरेट और सीआरपीएफ कमांडेंट को उस स्थान को संरक्षित और सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. कोर्ट ने कहा, कि “सील किए गए स्थान को लेकर प्रशासन की ओर से क्या-क्या किया गया है. इसके सुपरविजन की जिम्मेदारी उतर प्रदेश पुलिस महानिदेशक और उतर प्रदेश शासन के मुख्य सचिव की होगी.”
वहीं इस मामले पर उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम, केशव प्रसाद मौर्या (Keshav Prasad Maurya) ने कहा, “सत्य को आप कितना भी छुपा लीजिए, लेकिन एक दिन सामने आ ही जाता है.“ तो ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) चीफ़ असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने पलटवार करते हुए कहा, “ज्ञानवापी मस्जिद थी, और कयामत तक रहेगी इंशाअल्लाह.”
मुस्लिम पक्ष ने शिवलिंग मिलने के दावे को सिरे से नकार दिया है. उन्होंने कहा, कि इन लोगों के कहने से फैसला नहीं होगा. ऐसा कुछ भी नहीं मिला है. मुस्लिम पक्ष के वकील मुमताज़ अहमद ने कहा, कि सर्वे का काम पूरा हो गया है और अब रिपोर्ट पेश की जाएगी. इसके बाद, जिसको ऑब्जेशक्शन करना होगा वह अदालत में किया जाएगा.
आपको बता दें, कि ज्ञानवापी मस्जिद का ये विवाद आज का नहीं है. यह इससे पहले भी उठता आया है और सबसे पहले वर्ष 1936 में वाराणसी ज़िला अदालत में इसके लिए याचिका दायर की गई थी. तब वर्ष 1937 में कोर्ट ने विवादित स्थल पर नमाज़ पढ़ने की अनुमति दी थी. इसके बाद वर्ष 1991 में स्वयंभू विश्वेश्वर नाथ मंदिर की तरफ़ से मामला दर्ज़ हुआ था, जिसमें मंदिर की जगह पर मस्जिद बने होने का दावा किया गया था.