
हिन्दू पंचांग के अनुसार, गुरुवार यानी 24 जून को ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि है. इस तिथि को ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत या Vat Purnima व्रत भी कहा जाता है. इस दिन का विशेष धार्मिक महत्व है. इस पावन अवसर पर व्रत रखने से सुख समृद्धि की प्राप्त होती है और दांपत्य जीवन में खुशियां आती हैं. वट पूर्णिमा व्रत से अखंड सौभाग्य होने एवं पति की लंबी उम्र प्राप्त होने की मान्यता है.
Vat Purnima व्रत का पर्व ख़ास तौर पर गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा समेत अन्य दक्षिण राज्यों में मनाया जाता है. यह पर्व ठीक उसी प्रकार मनाया जाता है जिस प्रकार उत्तर भारत में वट सावित्री व्रत मनाया जाता है. जहां एक ओर वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है, वहीं दूसरी ओर वट पूर्णिमा व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. इस दिन देवी सावित्री के साथ ही ब्रह्म, यम, नारद की भी पूजा होती है.
इस साल Vat Purnima का यह पर्व 24 जून को मनाया जा रहा है. व्रत गुरुवार सुबह 03:32 से प्रारंभ होकर शुक्रवार रात 12.09 पर समाप्त होगा. व्रत का पारण 25 जून 2021 को होगा.
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, इस विशेष दिन पर बरगद के पेड़ या वट वृक्ष की पूजा करने का अत्यधिक महत्व है. भारत में बरगद के पेड़ पूजनीय है. इसका बहुत सम्मान किया जाता है, क्योंकि वह हमें तेज धूप से छाया प्रदान करता है. पेड़ को देवत्व और पवित्रता का प्रतीक भी माना जाता है. वट वृक्ष, ब्रह्मांड की रक्षा करने वाले तीन देवता (त्रिमूर्ति) ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर की त्रिमूर्ति का प्रतिनिधित्व करता है.
Vat Purnima के दिन महिलाएं आमतौर पर तिल और आंवला, पानी में मिलाकर स्नान करती हैं. वे इस दिन उपवास करती हैं लेकिन अगर कोई स्वास्थ्य कारणों से भोजन के बिना नहीं रह सकता है, तो व्रत भोजन की अनुमति देता है. वट पूर्णिमा व्रत का पालन करने वाली महिलाएं इस दिन नए कपड़े और श्रृंगार भी करती है. इस दिन पीला या लाल कपड़ा पहनना शुभ माना जाता है.
यह व्रत एक बरगद के पेड़ के नीचे की जाती है. अगर आसपास बरगद का पेड़ नहीं होता है तो पूजा के लिए पेड़ की एक टहनी रखी जाती है. पूजा स्थल पर सत्यवान और सावित्री की तस्वीरें लगाई जाती हैं और सिंदूर लगाई जाती है. पूजा के लिए लाल धागा, पानी, फूल, चना, चावल आदि आवश्यक सामग्री है. बरगद के पेड़ पर विशेष सात्विक वस्तुओं का भोग लगाया जाता है. महिलाएं मंत्रों का जाप करते हुए लाल धागे से वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं.सावित्री और सत्यवान की कथा का पाठ किया जाता है. अगले दिन पारण करके इस व्रत को सम्पन्न किया जाता है. Vat Purnima का यह पर्व इसी प्रकार से मनाया जाता है.