सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार का जवाब, धार्मिक स्वतंत्रता के बारे में कही ये बात

सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार का जवाब, धार्मिक स्वतंत्रता के बारे में कही ये बात

भारत की केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से कहा है, कि धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में लोगों को धर्म विशेष में धर्मांतरित करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है. यह प्रतिक्रिया, अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) की एक याचिका पर आई है, जो धोखे से धर्म परिवर्तन और इसके खिलाफ धमकी, उपहार और मौद्रिक लाभ के माध्यम से धोखा देने पर आई है. गौरतलब है, कि यह अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन करता है.

मिली जानकारी के मुताबिक, इस याचिका में दावा किया गया है कि अगर इस तरह के धर्मांतरण पर रोक नहीं लगाई गई, तो भारत में हिंदू जल्द ही अल्पसंख्यक हो जाएंगे. इसके साथ ही, एक हलफनामे भी सामने आया है. इसमें केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है, कि “धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार में अन्य लोगों को किसी विशेष धर्म में परिवर्तित करने का मौलिक अधिकार शामिल नहीं है.”

हलफनामे में यह भी कहा गया, कि उक्त अधिकार में निश्चित रूप से किसी व्यक्ति को धोखाधड़ी, धोखे, जबरदस्ती, लालच या ऐसे अन्य माध्यमों से परिवर्तित करने का अधिकार शामिल नहीं है. इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत आने वाले 'प्रचार' शब्द के अर्थ और तात्पर्य पर भी संविधान सभा में विस्तार से चर्चा और बहस हुई थी.

केंद्र सरकार ने कहा है, कि शीर्ष अदालत ने यह माना है कि 'प्रचार' शब्द किसी व्यक्ति को धर्मांतरित करने के अधिकार की परिकल्पना नहीं करता है. इसके अलावा, यह अपने सिद्धांतों की व्याख्या द्वारा धर्म को एक बार फैलाने के सकारात्मक अधिकार की प्रकृति में है. अदालत ने आगे कहा, कि धोखाधड़ी या प्रेरित धर्मांतरण सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने के अलावा किसी व्यक्ति की अंतरात्मा की स्वतंत्रता के अधिकार पर भी लागू होता है.

गौरतलब है, कि याचिकाकर्ता ने मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय, सीबीआई, एनआईए और राज्य सरकारों को प्रतिवादी बनाया है.

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