
Chhath Puja, भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इस त्योहार की बहुत मान्यता है. यह त्योहार अकसर दिवाली के कुछ दिन बाद मनाना शुरू कर दिया जाता है. इस वर्ष इस त्योहार को 8 नवंबर से मनाना शुरू किया जाएगा तथा 11 नवंबर को यह सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के साथ समाप्त होगा. इस व्रत की बहुत ही खास मान्यता है. इस व्रत के साथ, बहुत सी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं. पुरानी कथाओं के मुताबिक, इस व्रत को द्रौपदी और पांडव किया करते थे. उन्होंने यह व्रत अपना खोया हुआ राजपाठ वापस पाने के लिए किया था तथा सूर्य देव से प्रार्थना करते थे कि जिस प्रकार उनसे उनका राज्य गया है, उसी प्रकार उनका राज्य उनके पास वापस आ जाए. इसी मान्यता के साथ इस व्रत को करने की प्रथा चली आ रही है.
इसी प्रकार महाभारत से ही इस पूजा का इतिहास जुड़ा है , उस कथा के अनुसार Chhath Puja सबसे पहले कर्ण द्वारा की गई थी, जिन्हें भगवान सूर्य और कुंती की संतान माना जाता है. करण द्वारा Chhath Puja इसलिए की गई थी, क्योंकि भगवान सूर्य कर्ण के पिता थे. करण का देश, अंग देश के रूप में जाना जाता है. इस समय का बिहार का भागलपुर, उस जगह मौजूद था. यह भी कहा जाता है, कि वैदिक युग के ऋषि मुनि सूर्य की किरणों से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए इस व्रत को करते थे. ऋषि मुनि अपने आप को सीधे सूर्य के प्रकाश में उजागर करके पूजा करते थे और किसी भी खाद्य पदार्थ का सेवन नहीं करते थे.
Chhath Puja का पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में मनाया जाता है. इस त्योहार के समय, चार दिनों की अवधि में अपने परिवार के सदस्यों की भलाई, विकास और उचितता के लिए व्रत करने वालों द्वारा भगवान सूर्य की पूजा की जाती है. हालांकि महिलाएं छठ के दौरान बहुत ही मुश्किल व्रत रखती हैं , पुरुष भी इसे कर सकते हैं.
नहाए: Chhath Puja के पहले दिन को नहाए कहा जाता है. इस दिन व्रत करने वाला व्यक्ति साफ कपड़े पहनकर भगवान सूरज को प्रसाद अर्पण करता है. प्रसाद अर्पण करने के लिए कद्दू और चना दाल का इस्तेमाल किया जाता है.
खरना: Chhath Puja के दूसरे दिन को खरना कह कर संबोधित किया जाता है. खरना के दिन, सूर्य भगवान को खीर के प्रसाद को गुड़ के साथ तैयार जाता है. इस प्रसाद को खाने के बाद, व्रत करने वाले 36 घंटे तक चलने वाला एक कठिन निर्जला उपवास शुरू करते हैं.
Chhath Puja के तीसरे दिन व्रत करने वाले बिना कुछ खाए या पानी पिए व्रत रखते हैं. पूजा के लिए व्रत करने वालों के द्वारा गुड़, घी और आटे से प्रसाद का इस्तेमाल किया जाता है. इस प्रसाद को ठेकुआ कहा जाता है. सूर्यास्त के समय व्रत करने वाले अपने परिवार के साथ पास के जल निकाय में भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं, जिसे संध्या अर्घ्य या पहली अर्घ्य भी कहा जाता है. इस व्रत को करने के समय साफ-सफाई का मुख्य रुप से ध्यान रखा जाता है. इस बात का खास ध्यान रखा जाता है कि जो खाना व्रत करने वाला खाएगा, उस खाने को नमक छुए भी नहीं. यह व्रत पूरी रात जारी रहता है और अगले दिन के सूर्योदय तक चलता है.
पारन: Chhath Puja का अंतिम दिन काफ़ी ख़ास होता है इसे पारन कह कर संबोधित किया जाता है. व्रत करने वाले अपने पैर जल की नदी में डुबो कर, उगते सूरज को उषा अर्घ्य या दशरी अर्घ्य देते हैं, और अपना उपवास समाप्त करते हैं. साथ ही, प्रसाद वितरित करते हैं.
पिछले कुछ वर्षों से Covid-19 की वजह से इस व्रत के दौरान सार्वजनिक रूप से इकट्ठे होने पर पाबंदी लगाई गई थी. लेकिन इस वर्ष इस व्रत को करने तथा सार्वजनिक रूप में सूर्य को अर्घ देने के लिए प्रतिबंध को हटा दिया गया है. दिल्ली सरकार ने इस बार 10 नवंबर को इस व्रत के लिए छुट्टी की घोषण भी कर दी है.