
West Bengal में चुनाव और हिंसा का काफी पुराना और गहरा रिश्ता है. अक्सर जब भी वहां चुनाव होते हैं, तब किसी न किसी हिंसा की खबर ज़रूर सामने आती है. राजनीतिक पार्टियां आपसी गहमागहमी के चलते एक दूसरे पर इसका आरोप थोपने की कोशिश करती हैं. लेकिन यह बात भी सत्य है की बंगाल में आज तक जितने भी चुनाव हुए हैं, उसमें किसी न किसी पार्टी के कोई ना कोई सदस्य की मृत्यु ज़रूर सुनने को मिली है. आज हमने अपने इस लेख में West Bengal में हुई कुछ चुनावी झड़पों को इकट्ठा करके लिखा है. आइये इन पर एक नज़र डालते हैं.
जब मार्क्सवादियों ने पहली बार चखा सत्ता का स्वाद (1967-1977) :
रिकॉर्ड बताते हैं कि, साल 1972 और साल 1977 के बीच Siddhartha Shankar Ray के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने तब अति-वामपंथियों के खिलाफ एक भयंकर हमला किया. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री Indira Gandhi चाहती थीं कि, आंदोलन को कुचल दिया जाए. Ray के शासन में पुलिस अत्याचार और फर्ज़ी मुठभेड़ों के अनगिनत आरोप लगाए गए.
बुद्धदेव भट्टाचार्य के शासन के दौरान हिंसा (2000) :
आम चुनाव के लगभग एक साल बाद 27 जुलाई, 2000 को West Bengal के बीरभूम ज़िले के सुचपुर गांव में माकपा कार्यकर्ताओं द्वारा 11 भूमिहीन मुस्लिम मज़दूरों की हत्या की गई. ये एक बड़ी घटना थी, जिसने Mamata Banerjee को Jyoti Basu के शासन के दौरान उभरने में मदद की.
वामपंथ का पतन (2011) :
साल 2011 में सत्ता संभालने से पहले Mamata Banerjee ने चीज़ों को व्यवस्थित करने का वादा किया था. उन्होने कहा था कि, "हम बदलाव की राजनीति लाएंगे, प्रतिशोध की नहीं."